जन्म के साथ ही मनुष्य के संबंधों का सिलसिला प्रारंभ हो जाता है। विभिन्न संबंधों का निर्वाह करता हुआ मनुष्य आजीवन सुख-दुख का भोग करता चलता है। कभी आत्मज बनकर तो कभी मातृत्व भाव जगाकर, कभी मातृत्व सुख का अनुभव ...
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