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हारून शेख़

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Home/ हारून शेख़/Answers
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  1. Asked: August 18, 2020In: कला-एवं-संस्कृति (Arts & Culture)

    पोला त्योहार, महाराष्ट्र का पोला त्योहार क्या है

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on August 18, 2020 at 4:33 am

    पोला त्योहार महाराष्ट्र में मनाए जाने वाला त्योहार है। छत्तीसगढ़ में पोला मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। अगस्त महीने में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है। पोला त्योहार मनाने के बारे में ऐसा कहा जाता है कि चूंकि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धRead more

    पोला त्योहार महाराष्ट्र में मनाए जाने वाला त्योहार है।

    पोला त्योहार

    छत्तीसगढ़ में पोला मूलत: खेती-किसानी से जुड़ा त्योहार है। अगस्त महीने में खेती किसानी का काम समाप्त हो जाने के बाद भाद्र पक्ष की अमावस्या को यह त्यौहार मनाया जाता है।

    पोला त्योहार मनाने के बारे में ऐसा कहा जाता है कि चूंकि इसी दिन अन्नमाता गर्भ धारण करती है अर्थात् धान के पौधों में इस दिन दूध भरता है, इसीलिए यह त्योहार मनाया जाता है। इस दिन लोगों को खेत जाने की मनाही होती है।

    पोला पर्व महिलाओं, पुरुषों एवं बच्चों के लिए अलग-अलग महत्व रखता है। पोला के कुछ ही दिनों के भीतर तीजा मनाया जाता है। महिलायें इसलिये पोला त्योहार के वक्त अपने मायके में आती हैं। इस दिन हर घर में विशेष पकवान बनाये जाते हैं जैसे ठेठरी, खुर्मी। इन पकवानों को मिट्टी के बर्तन, खिलौने में पूजा करते समय भरते हैं ताकि बर्तन हमेश अन्न से भरा रहे। बच्चों को मिट्टी के बैल मिट्टी के खिलौने मिलते हैं। पुरुष अपने पशुधन को सजाते हैं, पूजा करते हैं। छोटे-छोटे बच्चे भी मिट्टी के बैलों की पूजा करते हैं। मिट्टी के बैलों को लेकर बच्चे घर-घर जाते हैं जहाँ उन्हें दक्षिणा मिलती है।

    बैलगाड़ी वाले अपने बैलों की जोड़ियाँ सजाकर प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं। बैलों के बीच दौड़ भी आयोजित की जाती है। विजयी बैल जोड़ी एवं मालिक को पुरस्कृत किया जाता है।
    गाँव में युवक-युवतियाँ एवं बच्चे अपने-अपने साथियों के साथ गाँव के बाहर मैदान में पोरा पटकने जाते हैं। इस परंपरा में युवक युवतियाँ अपने-अपने घरों से एक-एक मिट्टी के खिलौना ले जाकर निर्धारित स्थान में फोड़ते हैं और बाद में अपनी-अपनी टोली बनाकर मैदान में सूरपाटी, कबड्डी, खो-खो खेल खेलते हैं।

     

    Content source: http://ignca.nic.in/coilnet/chgr0037.htm

     

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  2. Asked: August 17, 2020In: इतिहास (History)

    भारत-चीन सम्बन्ध PDF

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on August 17, 2020 at 1:47 pm

    Download भारत चीन संबंध pdf भारत-चीन-संबंध-pdf

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  3. Asked: August 2, 2020In: सामान्य ज्ञान (GK-General knowledge)

    नई शिक्षा नीति 2020: क्या वाकई हुए है ज़रूरी बदलाव ?

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on August 5, 2020 at 6:53 pm
    This answer was edited.

    Nayi siksha niti 2020 some important points

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  4. Asked: August 5, 2020In: हिंदी लेख (Hindi Article)

    शिक्षा प्रणाली में सुधर पर निबंध – siksha pranali me nibandh ?

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on August 5, 2020 at 2:41 am

    शिक्षा प्रणाली में सुधार की सिफारिशें ( सुझाव) शिक्षा ज्ञानार्जन का सर्वोत्कृष्ट साधन है, जो निर्बाध, अविराम, आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा मानव की समस्त शक्तियों का विकास कर उसे एक संपूर्ण मानव बनाती है। मानव के सर्वांगीण विकास हेतु ऐसी शिक्षा आवश्यक है जो उसकी बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक, आत्मRead more

    शिक्षा प्रणाली में सुधार की सिफारिशें ( सुझाव)

    शिक्षा ज्ञानार्जन का सर्वोत्कृष्ट साधन है, जो निर्बाध, अविराम, आजीवन चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा मानव की समस्त शक्तियों का विकास कर उसे एक संपूर्ण मानव बनाती है। मानव के सर्वांगीण विकास हेतु ऐसी शिक्षा आवश्यक है जो उसकी बौद्धिक, मानसिक, शारीरिक, आत्मिक शक्तियों एवं प्रवृत्तियों का पूर्णरूपेण विकास करे। शिक्षा का उद्देश्य तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक वह व्यक्ति में सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं मानव मूल्यों का विकास न करे। वर्तमान भारतीय शिक्षा प्रणाली शिक्षा के इन महान उद्देश्यों को पूर्ण करने में व्यावहारिक रूप से असफल रही है।

    आधुनिक भारतीय शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों की देन है। ब्रिटिश शिक्षा शास्त्री लॉर्ड मैकाले ने आत्मविश्वास से कहा था”मुझे विश्वास है कि हमारी इस शिक्षा योजना से भारत में एक ऐसा शिक्षित वर्ग उभरेगा जो रक्त-वर्ण से तो पूर्णतया भारतीय होगा, पर रुचि, विचार और वाणी से अंग्रेज।” निश्चित ही आज की शिक्षा प्रणाली ने भारतीय मस्तिष्क को इतना संकुचित, स्वार्थी, एकाकी और अनुदार बना दिया है कि शिक्षा का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो गया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में व्यावहारिक रूप से सुधार की बहुत आवश्यकता है। इसके लिए निम्न सुझाव दिए गए हैं जिन्हें लागू करके शिक्षा को व्यावहारिकता के निकट लाया जा सकेगा।

    शिक्षा प्रणाली का सर्वप्रथम कर्तव्य है, ‘विद्यालय आने से छात्रों का भय दूर करना।’ यह तभी संभव है जब विद्यालयी शिक्षा बाबू बनाने का कारखाना नहीं अपितु ज्ञान का मंदिर बने। वहाँ का वातावरण सौहार्द्रपूर्ण, आत्मीयतापूर्ण, तनावमुक्त एवं खुशी भरा हो न कि कृत्रिम, बासी, उकताहटपूर्ण, एकरस एवं मशीनी हो। शिक्षा अधिकारियों एवं शिक्षाविदों को चाहिए कि विद्यालय का वातावरण स्वस्थ एवं उत्सुकता से पूर्ण बनाने के लिए कड़े कदम उठाए जाएं। यह तभी संभव है जब शिक्षा प्रदान करने वाले छात्रों के हितैषी हों। यह तभी संभव है जब शिक्षा प्रदान करना महान कार्य मानकर किया जाए न कि कर्त्तव्य भार की विवशता मान कर।

    नित्य जीवन को सुचारू एवं सरल बनाने में सहायक पाठों का समावेश पाठ्यपुस्तकों में होना आवश्यक है। इसके अंतर्गत पाठ्यपुस्तकों में ऐसे विषय होने चाहिए जो शिक्षार्थियों को नित्य जीवन की समस्याएं हल करने संबंधी व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करे तथा नैतिक, सामाजिक, चारित्रिक एवं व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास करने में सक्षम हो।

    असीमित पाठ्यक्रम एवं प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली ने छात्रों को पुस्तकों तक ही सीमित कर दिया है। शिक्षा का उद्देश्य केवल सर्वोत्तम अंक प्राप्त कर मनोवांछित जीवन लक्ष्य बनाना मात्र रह गया है। असीमित पाठ्यक्रम ने छात्रों में ‘रटन’ प्रवृत्ति का विकास किया है। जो जितना अधिक रटे, उतने अधिक अंक पाए। विषय को समझकर आत्मसात करने की क्षमता कुंठित हुई है। अब समय आ गया है छात्रों पर पाठों एवं विषयों का निरर्थक भार और न लादा जाए। इससे छात्र वर्ग में शिक्षा के प्रति अरुचि, निराशा, हताशा, विवशता की भावनाएं उत्पन्न होती हैं जिससे पढ़ना उनके लिए नौकरी प्राप्त करने की विवशता और समाज में शिक्षित कहलाने का प्रमाण मात्र रह जाता है। शिक्षा का उद्देश्य यहीं विफल हो जाता है।

    कुछ विषयों में तो असीमित पाठ्यक्रम की पुन:विवेचना एवं संशोधन किया जाना आवश्यक है। अनुपयोगी एवं नीरस सामग्री को बिल्कुल हटा देना चाहिए। इसके लिए जरूरी है शिक्षाविदों द्वारा समय-समय पर पाठ्यक्रमों पर विचार-विमर्श करके आवश्यकतानुसार संतुलित, व्यवस्थित एवं छात्रोपयोगी बनाने के लिए आवश्यक संशोधन-परिवर्तन करते रहना।

    शिक्षा प्रणाली के माध्यम से पाठ्य-पुस्तकों के पाठों में ऐसी व्यवस्था हो जिससे पाठ को व्याख्यान ‘लैक्चर’ पद्धति द्वारा समझाने की गुंजाइश न रहे, अपितु संक्षिप्त प्रश्नोत्तरी के माध्यम से विषयों को समझाया जाए। सभी विषयों में अरस्तू की इस प्रश्नोत्तर पद्धति’ से ज्ञान देने की संभावना उत्पन्न की जा सकती है. इससे छात्रों में विषय को समझने में प्रश्नोत्तर पद्धति’ का विकास होगा और पाठ को समझने में सरलता होगी।

    पाठों की भाषा क्लिष्टता की ओर शिक्षाविदों का ध्यान अवश्य जाना चाहिए। भाषा जितनी सरल, व्यवस्थित. सगठित एवं देशकाल से संबंधित होगी, छात्रों के लिए उतनी ही सग्राहय होगी। देशी-विदेशी रचनाओं की अनूदित भाषा की क्लिष्टता की ओर अवश्य ध्यान देना चाहिए। क्लिष्ट भाषा छात्रों में विषय के प्रति अरुचि उत्पन करती है।

    पाश्चात्य प्रभावित शिक्षा प्रणाली ने भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया है। नैतिकता एवं मानव मूल्यों को ताक पर रख केवल निजी स्वार्थ, बाह्याडंबर में आस्था, संकुचित मानसिकता आदि दुर्गुणों का विकास हुआ है। पाठ्यक्रम में ऐसे विषयों का होना आवश्यक है जिससे छात्रों में मानव मूल्यों का विकास, परस्पर सहयोग की भावना, स्व-संस्कृति पर गर्व, जन-कल्याण एवं देशहित की भावना सर्वोपरि रहे।
    कक्षा के नीरस वातावरण में नित्य ज्ञानदान की अपेक्षा आधुनिक तकनीक एवं आधुनिक संचार माध्यमों से शिक्षा देना नितांत हितकर रहेगा। समय-समय पर बालोपयोगी चलचित्र दिखाकर, पाठ से संबंधित पर्यटन करा कर, किसी प्रसिद्ध शिक्षाप्रद कथा का नाट्य रूपांतरण करा कर, नृत्य नाटिका कराकर तथा छात्रों द्वारा मंचन कराना जहाँ पाठ के विषय को मनोमस्तिष्क में बैठाने में, समझाने में सहायक हैं वहीं मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञानवर्धक भी हैं। पाठ्यपुस्तकों में ऐसे पाठों का समावेश होना आवश्यक है। दूरदर्शन, स्लाइड तथा कंप्यूटर जैसे अत्याधुनिक संचार माध्यमों द्वारा शिक्षा देना उत्तम एवं सरल है।
    शिक्षा का उद्देश्य भी तभी पूर्ण होगा जब छात्रों को पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान भी प्रदान किया जाए। विद्यालयों में विद्यार्थियों को दुर्घटना होने, अग्निकांड होने, डूबने, अपहरण, शारीरिक एवं मानसिक शोषण, यौन शोषण, भूकंप, करंट लगने, श्वास अवरुद्ध होने जैसे आपातकाल से निपटने की कला सिखाई जानी चाहिए। पाठ्यक्रम के अंतर्गत इस प्रकार का व्यावहारिक प्रशिक्षण आवश्यक कर देना चाहिए।

    विद्यालय में बाल संसद का आयोजन करके कतिपय बाल समस्याओं पर पक्ष-विपक्ष में चर्चा करवाई जाए, साप्ताहिक बाल सभा का आयोजन कर बाल प्रतिभाओं की खोज की जानी चाहिए। बाल लेखकों एवं कवियों की प्रतिभाओं की खोज के लिए समय-समय पर ऐसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जानी चाहिए जो विद्यालय से बढ़कर अंतर्विदयालय तक कराए जाने की संभावना जगाए। कक्षा में कुरीतियों, अंधविश्वासों से संबंधित अथवा छात्रों की रुचि के अनुसार विषय पर स्वतंत्र विचार प्रकट करने संबंधी कार्यक्रम का आयोजन किया जाना चाहिए। इससे छात्रों में कल्पना शक्ति एवं स्वतंत्र विचार प्रकट करने की प्रवृत्ति का विकास होगा।

    पाठ्यक्रम निर्धारित करने वाले अधिकारियों एवं शिक्षाशास्त्रियों को शिक्षा प्रणाली निर्धारित करते समय इस बात पर बड़ी सतर्कता बरतनी होगी कि जिन हाथों में वे छात्रों का भविष्य सौंप कर रहे हैं, क्या वे इसके योग्य हैं ? केवल ‘अध्यापन प्रशिक्षण प्रमाण पत्र’ शिक्षा दान जैसे पवित्र कार्य का मापदंड नहीं माना जाना चाहिए। अपितु उच्चकोटि का चरित्र, सर्वोत्तम आचरण, निष्पक्षता, वाक्कला में निपुणता, असीम धैर्य, सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार, क्षमाशीलता, संयत, शिष्ट एवं प्रभावशाली वाणी, दृढ़ निश्चय, उदार हृदय, सहिष्णुता आदि महान गुण भी मापदंड का दूसरा पक्ष होना चाहिए। ऐसे उत्तरदायित्वपूर्ण, सुदृढ़ एवं सुरक्षित हाथों में बच्चों का भविष्य निश्चित हो सुपुर्द किया जा सकता है।

    शिक्षा प्रणाली में छात्रों की शिक्षा के साथ-साथ ऐसा प्रावधान भी होना चाहिए जिसके अंतर्गत शिक्षकों के लिए वर्तमान अध्यापन तकनीक से संबंधित कार्यशाला एवं सेमिनार आदि में भाग लेना आवश्यक कर दिया जाना चाहिए, जिससे छात्रों को वर्तमान संदर्भ में शिक्षा प्रदान करना सरल हो।

    उपर्युक्त सुझाव तभी सहायक सिद्ध हो सकते हैं जब शिक्षा प्रणाली का प्रारूप तैयार करने वाले, लागू करने वाले शिक्षाशास्त्री तथा कर्णधार कालानुसार शिक्षा प्रणाली का संवर्धन एवं परिवर्तन करते रहें, कड़ाई से लागू करें और विद्यालयों पर इस संबंध में कड़ी दृष्टि रखें तभी शिक्षा का मूल उद्देश्य पूर्ण होगा।

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  5. Asked: August 2, 2020In: सामान्य ज्ञान (GK-General knowledge)

    नई शिक्षा नीति 2020: क्या वाकई हुए है ज़रूरी बदलाव ?

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on August 2, 2020 at 7:57 am

    नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी. इसके तहत छात्रों की शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साली की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है. अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पाँचवी क्लास को रखा गया है. इसके बाद मिडिल स्कूल याना 6-8 कक्षा मRead more

    • नई प्रणाली में प्री स्कूलिंग के साथ 12 साल की स्कूली शिक्षा और तीन साल की आंगनवाड़ी होगी. इसके तहत छात्रों की शुरुआती स्टेज की पढ़ाई के लिए तीन साली की प्री-प्राइमरी और पहली तथा दूसरी क्लास को रखा गया है. अगले स्टेज में तीसरी, चौथी और पाँचवी क्लास को रखा गया है. इसके बाद मिडिल स्कूल याना 6-8 कक्षा में सब्जेक्ट का इंट्रोडक्शन कराया जाएगा. सभी छात्र केवल तीसरी, पाँचवी और आठवी कक्षा में परीक्षा देंगे. 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा पहले की तरह जारी रहेगी. लेकिन बच्चों के समग्र विकास करने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए इन्हें नया स्वरूप दिया जाएगा. एक नया राष्ट्रीय आकलन केंद्र ‘परख (समग्र विकास के लिए कार्य-प्रदर्शन आकलन, समीक्षा और ज्ञान का विश्लेषण) एक मानक-निर्धारक निकाय के रूप में स्थापित किया जाएगा.
    • पढ़ने-लिखने और जोड़-घटाव (संख्यात्मक ज्ञान) की बुनियादी योग्यता पर ज़ोर दिया जाएगा. बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान की प्राप्ति को सही ढंग से सीखने के लिए अत्यंत ज़रूरी एवं पहली आवश्यकता मानते हुए ‘एनईपी 2020’ में मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) द्वारा ‘बुनियादी साक्षरता और संख्यात्मक ज्ञान पर एक राष्ट्रीय मिशन’ की स्थापना किए जाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है.
    • एनसीईआरटी 8 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए प्रारंभिक बचपन देखभाल और शिक्षा (एनसीपीएफ़ईसीसीई) के लिए एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम और शैक्षणिक ढांचा विकसित करेगा.
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  6. Asked: July 31, 2020In: अन्य (Other)

    २०२० में ब्लॉगिंग शुरू करना सही रहेगा? आज हर 7 में से 1 ब्लॉगर है।

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on July 31, 2020 at 6:33 pm

    बिल्कुल उचित है। 2020 में ब्लॉगर्स पर किसी भी प्रकार के प्रकोप की भविष्यवाणी नहीं हुई है। यह 2025 में भी सही बात होगा और 2050 में भी। ब्लॉगिंग का अर्थ है, अपने अनुभव को दुनिया के बीच बांटना। अपने ज्ञान को दूसरों के लिए उपलब्ध कराना। ऐसे व्यक्ति का मार्गदर्शक बन जाता, जो आपको धन्यवाद भी नहीं बोलेगा लRead more

    बिल्कुल उचित है। 2020 में ब्लॉगर्स पर किसी भी प्रकार के प्रकोप की भविष्यवाणी नहीं हुई है। यह 2025 में भी सही बात होगा और 2050 में भी। ब्लॉगिंग का अर्थ है, अपने अनुभव को दुनिया के बीच बांटना। अपने ज्ञान को दूसरों के लिए उपलब्ध कराना। ऐसे व्यक्ति का मार्गदर्शक बन जाता, जो आपको धन्यवाद भी नहीं बोलेगा लेकिन दुआएं जरूर देगा। आनंद की अनुभूति का दूसरा नाम है ब्लॉगिंग। एक ब्लॉगर और संत में कोई खास अंतर नहीं होता। ब्लॉगर्स तकनीकी युग के संत हैं।

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  7. Asked: July 30, 2020In: टेक्नोलॉजी (Technology)

    2020 का सबसे अच्छा मोबाइल कोनसा है ?

    हारून शेख़

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    Added an answer on July 31, 2020 at 6:26 pm

    Bahut hai

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  8. Asked: July 24, 2020In: अन्य (Other)

    दुनिया में कुल कितने देश हैं ?

    हारून शेख़

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on July 25, 2020 at 3:09 am

    कुल मिलकर दुनिया में 195 देश है । इसकी सूचि इस प्रकार है अफ़ग़ानिस्तान अल्बानिया एलजीरिया अंडोरा अंगोला एंटीगुआ और बारबुडा अर्जेंटीना आर्मीनिया ऑस्ट्रेलिया ऑस्ट्रिया आज़रबाइजान बहामा बहरीन बांग्लादेश बारबाडोस बेलोरूस बेल्जियम बेलीज बेनिन भूटान बोलीविया बोस्निया और हर्ज़ेगोविना बोत्सवाना ब्राज़िल ब्रRead more

    कुल मिलकर दुनिया में 195 देश है । इसकी सूचि इस प्रकार है

    अफ़ग़ानिस्तान

    अल्बानिया

    एलजीरिया

    अंडोरा

    अंगोला

    एंटीगुआ और बारबुडा

    अर्जेंटीना

    आर्मीनिया

    ऑस्ट्रेलिया

    ऑस्ट्रिया

    आज़रबाइजान

    बहामा

    बहरीन

    बांग्लादेश

    बारबाडोस

    बेलोरूस

    बेल्जियम

    बेलीज

    बेनिन

    भूटान

    बोलीविया

    बोस्निया और हर्ज़ेगोविना

    बोत्सवाना

    ब्राज़िल

    ब्रुनेई दारुस्सलाम

    बुल्गारिया

    बुर्किना फासो

    बुस्र्न्दी

    कंबोडिया

    कैमरून

    कनाडा

    केप वर्दे

    केंद्रीय अफ्रीकन गणराज्य

    काग़ज़ का टुकड़ा

    चिली

    चीन

    कोलम्बिया

    कोमोरोस

    कांगो

    कांगो

    कोस्टा रिका

    कोटे डी आइवर

    क्रोएशिया

    क्यूबा

    साइप्रस

    चेक गणतंत्र

    डेनमार्क

    जिबूती

    डोमिनिकाडोमिनक गणराज्य

    इक्वेडोर

    मिस्र

    एल साल्वाडोर

    भूमध्यवर्ती गिनी

    इरिट्रिया

    एस्तोनिया

    इथियोपिया

    फ़िजी

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    गैबॉन

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  9. Asked: July 15, 2020In: त्यौहार (Festival)

    होली क्यों मनाया जाता है

    हारून शेख़

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    हारून शेख़ Guru Harun
    Added an answer on July 15, 2020 at 1:53 pm

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