‘सदाचरण’ शब्द की व्युत्पत्ति सद्-आचरण पदों के संयोग से हुई है, जिसका तात्पर्य अच्छे आचरण से है। मनुष्य का यशअपयश, मान-सम्मान उसके आचरण पर निर्भर करता है। सदाचरण शब्द अपने आप में विस्तृत व गूढ़ अर्थ समेटे है फिर भारतीय संस्कृति में तो इसकी महिमा की विस्तृत स्तुति की गई है। शिष्टाचार, सदाचार, सद्व्यवहार आदि नामों से जाना जाने वाला हमारा आचरण एक सीमा तक नियमों के बंधन में बंधा आचरण है। इसी शिष्ट आचरण से मनुष्य न केवल अपने आसपास, अपने समाज में, अपने देश में अपितु विश्व में भी प्रसिद्धि और सम्मान अर्जित करता है।
मनुष्य का जीवन समाज के नियमों से बंधा हुआ है इसलिए वह एक सामाजिक प्राणी कहलाता है। समाज में एकता, समानता, शांति, भाईचारा बना रहे इसके लिए समाज में नियम बनाए गए हैं जो देश-कालानुसार बदलते रहते हैं। मनुष्य को उन्हीं नियमानुसार अपना जीवन बिताना पड़ता है, क्योंकि ये नियम समाज में बहुजन हिताय और बहुजन सुखाय के निमित्त बनाए जाते हैं। इसमें समाज को सुचारू एवं व्यवस्थित रूप से चलाने की अपूर्व व्यवस्था है। यह कतिपय सामाजिकों के उन्मुक्त, उच्छृखल व्यवहार एवं जीवन पर अंकुश लगाता है। मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह अपने आचरण को दूसरों के लिए सुखकर एवं हितकारी बनाए।
सदाचरण के प्रमुख गुणों में सर्वप्रथम गुण है ‘विनम्रता’। हमारा सबके साथ विनम्रतापूर्ण व्यवहार होना चाहिए। बड़ों का आदर, छोटों से स्नेह का व्यवहार रखना चाहिए। आदर-स्नेह तो लेन-देन का सौदा है जैसा व्यवहार हम औरों को देंगे, बदले में वैसा ही व्यवहार हमें औरों से प्राप्त होगा। हमारे विनम्र व्यवहार को देख यदि कोई हमें दीन-हीन एवं कमजोर समझकर हमारा अपमान करे, हमसे सहानुभूति रखे, हम पर दया दिखाए तो हमें ऐसे लोगों से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि इससे हमारा आत्मसम्मान आहत होता है। सदाचरण की सबसे प्रमुख बात है मधुर वाणी। समय-समय पर कवियों ने भी मधुर वाणी पर अपनी लेखनी चलाई है।
‘ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए।
औरन को सीतल करे आपहु सीतल होए।’
मधुर वाणी बोलने पर न केवल सुनने वाले को आनंद की प्राप्ति होती है अपितु बोलने वाले को भी सुखानंद प्राप्त होता है। कौआ और कोयल एक वर्ण-रूपाकार होने पर भी वाणी से कोयल सुखदायक तथा कौआ कष्टदायक है। मधुर वाणी का तात्पर्य चापलूसी से नहीं लिया जाना चाहिए। मृदुल बोलने वालों से लोग अपनापन का व्यवहार रखते हैं, उन्हें अपने साथ, अपने निकट रखना चाहते हैं। ऐसे आदर्श पात्र समाज में सुख-शांति बनाए रखने का पर्याय समझे जाते हैं। मधुर वाणी बड़ीसे-बड़ी कठिनाइयों को चुटकियों में हल कर देती है, बिगड़े हुए काम को सरलता से बना देती है। मधुर वचन बोलने वाले व्यक्तियों को साक्षात्कार में आसानी से चुन लिया जाता है। इसलिए वाणी में कर्कशता एवं कटुता को सदा के लिए त्याग देना चाहिए।
सदाचार के प्रमुख नियमों में अनुशासन का महत्त्वपूर्ण स्थान है। अनुशासन केवल पालन के लिए ही नहीं है अपित यह हमारे प्रतिदिन के स्वभाव में शामिल होना चाहिए। समाज में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखनी है तो अनुशासन के नियमों का पालन अवश्य करना चाहिए। अनुशासन के अंतर्गत कई प्रकार के नियम आते हैं जैसे सामाजिक, धार्मिक, नैतिक आदि। बच्चा जैसे ही विद्यालय जाना प्रारंभ करता है उसे भिन्न-भिन्न नियम सिखाए जाते हैं। जैसे बड़ों का आदर करना, बराबर वालों से स्नेह रखना, वस्तुओं को बांटकर उपयोग में लाना, वस्तुओं को उचित स्थान पर रखना, समय की पाबंदी, स्वच्छता आदि। इस प्रकार वह समाजरूपी महासमुद्र में स्वयं को सरलता से समाहित कर लेता है। सड़क पर चलने के लिए यातायात के नियमों का पालन करना अत्यंत आवश्यक है, इससे सड़क व्यवस्था सुचारू एवं निर्बाध रहती है अन्यथा बड़ी दुर्घटना की संभावना सदा बनी रहती है। धार्मिक नियमों के अंतर्गत हमें सभी धर्मों के लोगों को अपने जैसा, एक समान मानना चाहिए और सभी धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए। सभी की धार्मिक भावनाओं का आदर करना चाहिए। यदि हम किसी धार्मिक स्थल या धार्मिक भावनाओं से जुड़े किसी पवित्र स्थल पर जाएं तो हमें वहाँ के नियमों का पालन करना चाहिए। सदाचारी व्यक्ति सदा रीति-रिवाजों का सम्मान करता है।
सदाचरण का अन्य प्रमुख नियम समय पालन’ है। बाल्यावस्था से ही बच्चों को समय का सदुपयोग करना सिखाना चाहिए। समय की पाबंदी हमारे स्वभाव में ही होनी चाहिए। समय पालन जहाँ बड़ों के लिए जरूरी है वहीं विद्यार्थियों के लिए तो नितांत आवश्यक है। बचपन में जो आदत बच्चों में पड़ जाती है, वह जीवनपर्यंत बनी रहती है। विद्यार्थियों को तो संपूर्ण जीवन ही जीना है, इसलिए समय सारिणी बनाकर कार्यों का निर्धारण कर लिया जाए तो सब काम निश्चित समय पर अनायास होते चले जाते हैं। इससे छात्रों को समय पर कार्य समाप्त न होने की तथा समयाभाव की शिकायत नहीं रहेगी। सभी कार्यों को समय तालिका अनुसार पूर्ण कर लेने के पश्चात् विद्यार्थी अपनी रुचि के अनुसार पढ़ सकते हैं तथा अन्य काम कर सकते हैं। कम अंक लाने वाले विषयों में अधिक समय देकर उसमें प्रवीण हो सकते हैं। इसीलिए किसी मनीषी ने उचित ही कहा है-“जिसने समय को पास (बिताया) किया, समय ने उसे फेल (अनुत्तीर्ण) कर दिया और जिसने समय को फेल किया, समय ने उसे पास कर दिया। इसके गूढार्थ को आत्मसात् करने वाला व्यक्ति चहुँमुखी सफलता एवं उन्नति प्राप्त करता चला जाता है!”
सदाचरण के अन्य प्रमुख नियमों में एक नियम है किसी की निजी बातों में हस्तक्षेप न करना, छुपकर किसी का पत्र न पढ़ना, पीठ पीछे किसी की बुराई करना, किसी भी अत्यंत गोपनीय एवं निजी बात को चटखारे लेकर सार्वजनिक करना, बिना अनुमति के किसी की वस्तु का उपयोग करना आदि असभ्यता, अशिष्टता मानी जाती है।
सदाचरण करने वाले व्यक्ति को उदारमना होना चाहिए। ऐसा व्यक्ति समाज की बुराइयों से, संकुचित विचारों से, अंधविश्वासों से विलग रहता है। किसी प्रकार की अफवाहों पर कान नहीं देता है। ईया-द्वेष आदि दुर्भावनाओं से दूर रहता है। इसी के साथ वह ऊँच-नीच, राजा-रंक, छुआ-छूत, काले-गोरे के अंतर्विरोधों से दूर रहता है। मानव मात्र के कल्याणार्थ ही वह कार्य करता है।