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Home/ Questions/Q 321
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हारून शेख़
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हारून शेख़Guru
Asked: July 25, 20202020-07-25T03:35:36+00:00 2020-07-25T03:35:36+00:00In: हिंदी लेख (Hindi Article)

मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी [mahatma gandhi]

मेरे प्रिय नेता भूमिका– नेता वो, जो अपने अनुयायिओं का पथ-प्रदर्शक और पथ-प्रवर्तक हो | जो स्वयं आदर्श बन प्रेरणा का अश्रेय्स्रोत हो | मेरे प्रिय नेता महात्मा गांधी में ए सभी विशेषताएँ समाहित हैं।सत्य और आहिंसा के मार्ग पर चलते हुए उन्होंने अपने युग को बदला | इतनी जाग्रति पैदा की कि अंग्रेजी साम्राज्य की वर्षों से जमी नींव हिल गयी | आज भी मुझ जैसे अगणित लोग उन्हें अपना आदर्श मानकर प्रेरणा प्रहण करते हैं।  जन्म तथा शिक्षा–  महात्मागांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान में हुआ था | उनके पिता श्री करमचंद गांधी पोरबंदर रियासत के दीवान थे | माता पुतली बाई अत्यंत भली और धर्म-परायण महिला थीं | महात्मा गांधी का पूरा नाम है- मोहनदास करमचंद गांधी | पोरबंदर में प्राम्भिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे 1887 में वकालत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड चले गए।  जीवन के प्रमुख पड़ाव– विदेश से भारत लौटने पर उन्होंने वकालत प्रारंभ की | इसी सिलसिले में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा | वहाँ अंग्रेजों की रंग-भेदनितिका उन्हें निजी अनुभव हुआ | यह अनुभव इतना कड़वा था, की इसने गांधी जी की दिशा ही बदल दी | वहाँ उन्होंने अपने भारतीय भाइयों सहयोग से आंदोलन छेड़ दिया | अंततः वहाँ की अंग्रेजी सर्कार को उनकी कुछ बातें  स्वीकार करनी पड़ी।  दक्षिण अफ्रीका से उनके सत्याग्रह आंदोलन की गूँज पूरे विश्व में फ़ैल गयी | वे भारत लौटे और यहाँ भी अंग्रेजी शासन के विरुद्ध  असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया | यहाँ नेता का वह गुण अह गुण सामने आया, जिसने लाखों-करोड़ों के दिलों में उन्हें जगह दी, सर्वस्व कुर्बान करने का जज़्बा दिया | वह गुना था- जो करने को कहा, उसे पहले स्वयं किया | जेलों में रहें, लाठी-डंडे खाए, उचित समय पर सही निर्णय लेकर उसपर दृढता से चले | 1921 में ‘असहयोग आंदोलन’ शुरू किया | 1930 में ‘नमक कानून’ का विरोध करने के  लिए दांडी मार्च किया | 1942 में पुरे जोर-शोर से ‘भारत-छोड़ो आंदोलन’ का मुख मोड़ा | उनकी पुकार पर विद्यार्थीयों ने पढाई और लोगों ने सरकारी नौकरियाँ छोड़ीं और आंदोलन में कूद पड़े | चल पड़े जिधर दो डग मग में चल पड़े कोटि पग उसी ओर।  अंततः 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा | गांधी जी की चिर-अभिलाषा पूर्ण हुई, किन्तु विभाजन के ग्रहण ने प्रसन्नता को ग्रस लिया था।  महात्मा गांधी एक राजनेता ही नहीं , समाज सुधारक भी थे | आदर्श नेता के भाँती उन्होंने देश और समाज में व्याप्त हर बुराई को दूर करने का प्रयत्न किया | अछुतोद्धार, नारी-शिक्षा और सांप्रदायिक एकता के लिए वे आजीवन संघर्ष  करते रहे | ‘साध्य’ के साथ  ‘साधन’ की पवित्रता पर उन्होंने विशेष बल दिया | उनकी यह विशेषता उन्हें महान लोगों की कोटि में ले जाती है | #सम्बंधित लेख : महात्मा गाँधी उपसंहार– मेरे प्रिय नेता के कार्य उन्हें सच्चे अर्थों  में ‘महात्मा’ कहे जाने के योग्य बनाते हैं | भारतवासियों  ने भी ‘बापू’ कहकर अपना निश्छल स्नेह दिया | ‘राष्ट्रिपिता’ का गौरवशाली पद देकर उन्हें सम्मानित किया | 30 जनवरी, 1948 को एक दिग्भ्रमित व्यक्ति की गोली से उनका देहांत हुआ, किंतु वे हम सब भारतीयों के दिल में जीवित हैं | पूरा विश्व आज भी शांति और सौहार्द्र की स्थापना के लिए उनके सिधान्तोंसे प्रेरणा लेता है।

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