भारतीय किसान पर निबंध
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Manish kumar
प्रस्तावना: महात्मा गांधी ने कहा था “भारत का हृदय गांवों में बसता है। गांवों में ही सेवा व परिश्रम के अवतार किसान बसते हैं। यह किसान नगर वासियों के अन्नदाता है। सृष्टि के पालक है। गांव की उन्नति से ही भारत की उन्नति हो सकती हैं।” भारतीय किसान को देखकर यह उक्ति बराबर याद हो आती है ।
“सादा जीवन उच्च विचार ।
यह है देखो भारतीय किसान।।”
सचमुच में भारतीय किसान भारतीयता का सच्चा प्रतिनिधि है उनमें भारत की आत्मा निवास करती है।
भारतीय किसान की जीवन दशा : यह कड़वा सच है कि किसान परिश्रमी ओर सीधा साधा होने के बावजूद भी भारतीय किसान की जीवन दशा बड़ा ही दुखद है। उनका संपूर्ण जीवन जोखिम भरा है, उसके जीवन का एकमात्र आधार कृषि की भी बड़ी ही सोचनीय दशा है ।
ऐसा इसलिए उस पर कभी ना कभी कोई ना कोई प्राकृतिक आपदाओं के बादल मंडराया करते हैं ।कभी अतिवृष्टि तो कभी अनावृष्टि की मार उसे सहनी पड़ती है। इसी तरह कभी ऊपल वृष्टि से तो कभी बाढ़ की चपेट से वह स्वयं को बचाने में असहाय होकर अपने भाग्य को कोसने लगता है। इसके अतिरिक्त उसे कभी टिड्डी दल के आक्रमण तो कभी आंधी और तूफान के प्रहार भी सहने पड़ते हैं ।कभी-कभी तो उसे चूहे और बनेल पशु पक्षियों से नाक में दम होना पड़ता है। दिन-रात कठोर परिश्रम करने पर भी उसके पास टूटी-फूटी घास फूस की झोपड़ी होती है ।उसके बच्चे भूख से कभी-कभी भूख से इतना बिलबिलाने लगते हैं ।कि वह बहुत ही दयनीय दिखाई पड़ते हैं। उनका जन्म भी तो घोर अभाव बेबसी ऋण जाल में फंसा- लीपटा होता है ।उनके इस प्रकार के जीवन को देखकर किसी ने ठीक ही कहा है।
है घर- फूस की झोपड़ियां ,इसमें जीवन पलता है।
दिन-रात परिश्रम में पिसता टुकड़ों में मानव पलता है।।
प्राकृतिक आपदाओं के साथ-साथ भारतीय किसान को कृतिम अर्थात सामाजिक आपदा भी झेलनी पड़ती है।फलतः उसकी जीवन दशा और दुखद बन जाती है।इस संदर्भ में यह कहना बहुत ही चिंताजनक है कि आजादी के 50 वर्षों बाद भी भारतीय किसान के जीवन में कोई अपेक्षित परिवर्तन नहीं आया है ।जहां एक और वह हर प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त होकर दुखी होता है वहीं दूसरी ओर सामाजिक कुप्रभाव से बच नहीं पाता है ।उसके जीवन में अशिक्षा का अभाव, संघर्ष, उपेक्षा ,मुकदमेबाजी,शोषण ,धोखा, दबाव आदि सामाजिक प्रकोप आकर उसे नरक की जिंदगी जीने के लिए विवश कर डालते है।ये उसके किंचित सुख एक समिति मिलते ही वह दूसरे के चंगुल में फंस जाता है इस तरह वह अपनी पूरी जिंदगी में कभी भी चैन की बंसी नहीं बजा पाता है
भारतीय किसानों तप त्याग की सजीव मूर्ति
भारतीय किसान सचमुच तप-त्याग की सजीव मूर्ति है ।कृषि ही उसकी तपोभूमि है। उसका संपूर्ण जीवन भूमि पर ही त्याग स्वरूप होता है। इस इस संदर्भ में उसे सच्चा ईशवर कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।ऐसा इसलिए कि वह अपने कृषि का काम करके सबका पालन पोषण अपने सपने द्वारा अर्जित अन्न से करता है।भले ही वो भूखा प्यासा क्यों ना हो वो सदैव संतुष्ट रहता है ।सहनशीलता उसकी नाभि है ।हमेशा कार्य करना उसकी प्रवृत्ति है।कम सोना और कम भोजन करना ये तो उसके जीवन में सदैव ही बना रहता है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर किसी कवि ने ठीक ही कहा है।
“बरसा रहा है ,रवि अनल भूतल तवा सा जल रहा।
है चल रहा सन-सन पवन,तन से पसीना ढल रहा।।
देखो कृषक शोणित सुखाकर ,हल तथापि चला रहे।
किस लोभ से वे इस आंच में निज शरीर जला रहे।।
है रोटियां सुखी -सुखी, खबर साग की उसको नहीं।।”
भारतीय किसान की जीवन दशा में सुधार
किसानों की दुर्दशा ग्रस्त जीवन को सुधारने के लिए हमारी सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के तहत अपेक्षाकृत धनराशि खर्च की है ।इससे किसानों को घोर निराशापूर्ण जीवन से निजात मिली है। फलतःकिसानों की शिक्षा दीक्षा के लिए प्रौढ़ शिक्षा जैसे कार्यक्रम दूर-दूर तक अविकसित क्षेत्रों में भी चल रहे हैं ।जगह-जगह विद्यालय, उद्योग धंधों आदि की व्यवस्था की गई है ।कृषि के लिए विभिन्न प्रकार के उपकरणों ,साधनो की ओर भी सरकारों ने ध्यान दिया है ।विभिन्न प्रकार के वैज्ञानिक प्रभाव ने उनकी रूढ़िवादी विचारधारा को छूमंतर किए जाने का प्रयास किया है। किसानों के जीवन स्तर में परिवर्तन करके ऊंचा उठा दिया है ।गाँवो में शहरीकरण को लाकर गावो को आधुनिकता का ताज पहना दिया है।
उपसंहार
भारतीय किसान हमारी भारतीयता की सच्ची मूर्ति है ।वह देश की रीढ़ है। वह हमारी अर्थव्यवस्था की प्राण है। इसलिए उसके जीवन दशा को अभी और ऊपर उठना होगा इसके लिए उसे सेठ साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराना होगा। इस कार्य के लिए उसे हमें उनके उत्पादों का सही मूल्य दिलाना होगा ।सुलभ रीण दिला करके उसके लिए उन्नतशील खाद बीज की व्यवस्था करनी होगी ।इस तरह से पूरा आत्मनिर्भर बनाना होगा।