कहने मात्र को सिर्फ एक शब्द ,जो उजाड़ देता है भरा पूरा परिवार, छीन लेता है खुशियाँ ,भर कर अनवरत बहने वाले आसूं ,रह जाता है एक खालीपन दो शब्द उजाड़ते कई जिंदगियां राजनैतिक गलियारे भी खूब गर्म हुए, चर्चाओं का दौर चला, किसी ने उचित और किसी ने अनुचित कहा तलाक शब्द को जोड़ा गया एक सम्प्रदाय विशेष से ,कहीं कानून ओर कहीं धर्म में शरीयत का हवाला देकर अपनी अपनी बात को सिद्ध करने के लिए, हमारी आदत भी है अपने हिसाब से चीजों ओर हालातों को अपने ही मुताबिक तोड़ना और मरोड़ना उदाहरण के लिए बिल्ली का रास्ता काटना ,अपशगुन माना जाना कोइ ये जानने की कोशिश नहीं करता इसके पीछे क्या तथ्य है बिल्ली की महसूस करने की ताकत हमसे 350गुना तीव्र होती है ,जिससे उसे पता लग जाता है कुछ नया घटित होने वाला है ,जो रोज नहीं होता और वो आगाह करती है हमे सावधान करती है ,पर हम लोग इसे अपशगुन का नाम देते हैं तलाक के विषय में तीन बार तलाक कहकर मात्र शब्दों से सम्बन्ध बिच्छेद ना कानून में सही है ना ही शरीयत में बल्कि इस्लाम में इसे बुरा या खराब तलाक माना गया है सही पद्धति कुछ और ही है।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य पुरुष जो तलाक बोलता है वो उस समय तन और मन से पूर्णतः स्वस्थ हो ।और एक बार तलाक बोलने के बाद एक महीने तक दोनो पक्षो को दोनो तरफ से रजामंद करने की कोशीश, उसके बाद भी राजीनामा न होने पर दूसरी बार तलाक कहना ,और फिर एक महीने का अंतराल तब फिर तीसरी बार तलाक बोलकर शादी को खत्म किया जा सकता है और इस बीच पति पत्नी में कोई शारीरिक सम्बन्ध ना स्थापित हों ,तब जाकर तलाक को मंजूरी मिलती है |साथ ही इसमें तय हुआ पूरा मेहर हक अदा किया जाता है जिससे महिला की आने वाली जिंदगी का भरण पोषण किया जा सके।
1939 एक्ट के अनुसार महिला को भी तलाक मांगने का अधिकार है जिसमें वह अपने पति से अपनी इच्छा से तलाक मांग सकती है जिस तरह निकाह के लिए कबूल बोलते समय मौलवी घर परिवार और स्वस्थ मानसिकता का होना जरूरी है उसीतरह वो ही सम्बन्ध तोड़ते समय ये सब भी जरुरी है जिसतरह बुखार को उतारने के लिए कड़वी दवा दी जाती है उसी तरह जब सम्बन्ध सड़ने लगें तो दुर्गंध से बचाने के लिए ,एक स्वस्थ समाज के लिए तलाक की सहूलियत रखी गयी पर जिसका दुरुपयोग अपनी सहूलियत और विकृत मानसिकता के लिए किया जाता रहाआदमी द्वारा की गयी गलती दोष दिया इस्लाम को, कानून को, जिसका बुरा असर अधिकांशतः महिलाओं पर पड़ता है घर चलाने वाले दो पहिये एक कमाता है दूसरा सहेजता है तलाक के बाद महिला के हाथ पूरी तरह कट जाते हैं घर को सजाने संवारने में वो कमाना भूल चुकी होती है उम्र के पड़ाव पर जब तल्लाक से सामना होता है तो कमर टूट जाती है बच्चे जिनसे रूठ जाता है भविष्य, टूट जाते हैं सपने ,अपंग हो रह जाती जिंदगी ,सहानुभूति की बैसाखी के सहारे घिसटते हैं पल पल तलाक को मंजूरी देने ना देने में बहुत सारे कानूनी और गैर कानूनी दांव पेच चले सामाजिक संस्थाओं ने भी खूब वाद प्रतिवाद किया राजनैतिक गलियारों में भी गर्मागर्म बहस रही ,पक्ष बिपक्ष ने,सत्ता में मौजूद या सत्ता में आनेवाली पार्टियों ने अपने अपने लाभ के लिए तर्क वितर्क पेश किये तलाक कानून की ऊंची दीवारों में, सत्ता की मेजों पर ,चाय के साथ परोसे जाने वाला गर्मागर्म बहस का मुद्दा रहा। बस बिखरा उजड़ा तो भरा पूरा एक आशियाना।
लेखिका – नूतनज्योति