किसी प्रदर्शनी का आंखों देखा वर्णन
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Manish kumar
प्रस्तावना
कुछ वर्ष पूर्व नई दिल्ली में एक रेलवे प्रदर्शनी का आयोजन हुआ ।जनवरी मास में इसका उद्घाटन हुआ था ।पुराने किले के पास प्रगति मैदान में लगभग एक डेढ़ मिल के क्षेत्र में फैली इस विशाल प्रदर्शनी के एक-एक और चमचमाती टिनो का घेरा हुआ था।बाहर आकर्षक द्वार बने हुए थे, जिनमें अंदर जाने के लिए प्रवेश पत्र 50 रुपये दे कर मिल रहे थे। स्थान -स्थान पर स्कूटर और प्राइवेट मोटर का प्रबंध था। जो कि दर्शकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाती थी।डी. टी.सी.के अधिकारियों ने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार के सामने ही बसों का स्टैंड बनाया था।
प्रदर्शनी देखने के लिए प्रतिदिन कई लोगों की संख्या में स्त्री पुरुष और ब्च्चे आते थे हमने भी प्रधानाचार्य जी से आग्रह किया कि हमें भी प्रदर्शनी दिखाने के लिए ले जाए अतः शुक्रवार को अधिक भीड़ ना होने की संभावना से जाने का निर्णय हुआ।
प्रस्थान
प्रदर्शनी देखने के लिए 4:00 बजे के लगभग 30 छात्र स्कूल के एक अध्यापक के साथ मोटर में सवार हुए और दिल्ली स्टेशन पर पहुंचे ।यहां से प्रदर्शनी के लिए बसे जाती थी।टिकटे लेकर हम बस में बैठ गए और थोड़ी देर में टेढ़े मेढ़े मार्गो से चक्कर खाती बस हमें प्रदर्शनी के द्वार तक पहुंचा दिया उसके भव्य द्वार को देखकर वहां प्रदर्शनी का ज्ञान हो जाता था ।मुख्य द्वार पर अगला भाग अर्धचंद्राकार बना हुआ था लाल बजरी ने सारी भूमि को आकार में ढक लिया था द्वार के दाहिने और प्रवेश पत्र पाने का स्थान था। जहां से लाइन में लगकर ₹50 में प्रवेश पत्र मिलता था। प्रत्येक द्वार पर वर्दीधारी खड़े थे ।जो कि प्रवेश पत्र देखकर ही अंदर जाने देते थे।
स्वरूप
अंदर जाते ही ऐसा लगा कि मानो हम किसी आश्चर्य लोक में आ पहुंचे हो ।चारों और दुकानें स्टॉल ,चौराहे ,ऊँचे स्तंभ थे और माइक्रोफोन के शब्द सुनाई दे रहे थे। सामने ही वह स्टॉल थी, जहां पर रखी वस्तुये देखकर हम चकित हो गए। कहीं पुराने इंजनों के नमूने रखे थे। कहीं सिग्नल करने का यंत्र लगा हुआ था। एक स्थान पर लाइनें बिछी हुई थी ।जो बटन दबाते ही डिब्बे एक लाइन से दूसरी लाइन पर पहुंच जाते थे ।दूसरी और मुंबई और शिमला के सुरंग मार्गो के मॉडल बने हुए थे ।कृतिम पहाड़ी बनाकर उन पर चक्करदार मार्गों का प्रदर्शन, रेल की फेरे वाला मार्ग और सुरंग में प्रवेश करना दिखाया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात किए गए भारतीय रेलवे के वर्गीकरण के अनुसार उत्तरी रेलवे आदि सर्वथा भी दिए हुए थे कि भारत में पहली रेलवे लाइन के स्टाल आदि सर्वथा पृथक थे। ऐसे चित्र भी दिए हुए थे।कि भारत मे पहली रेलवे लाइन कोंन सी निकली थी।कितने वर्षों के पश्चात किसमें क्या परिवर्तन हो गया।
उसके अंदर भाग में घूमते- घूमते लगभग हमें 3 घंटे हो गए थे ।अब हम रेल के डिब्बों को देखने चलें।एक कठिनाई यह हुई कि जिस प्रकार अंदर के भागों में सरकारी कर्मचारी दर्शकों को समझाने के लिए नियुक्त थे ,वे सभी को आवश्यक जानकारी अवश्य देखे थे, पर बाहर ऐसी सुविधा ना थी ।एक दो सज्जन ऐसे अवश्य मिले, जो कि प्रदर्शनी पहले देख चुके थे ।उनसे ज्ञात होने पर हमने हुए इंजन देखा जो कि भारत में पहली बार आया था वह ग्वालियर के महाराजा का था ।और कोयलों के स्थान पर डिब्बा भी देखा जो कि भारत में बना है ।और सभी सुविधाओं से संपन्न हैं वह उस व्यक्ति के नाम से प्रसिद्ध है ।फिर हम उसे रेल में बैठे जो कि सारी प्रदर्शनी में घूमती थी और अंत में अपने चलने के स्थान पर ही आकर रूकती है ।इसमें हमें बड़ा मजा आ रहा था।
उपसंहार
इस इस प्रदर्शनी का आयोजन बड़ी कुशलता से हुआ था। संपूर्ण प्रदर्शनी में बिजली का संबंध जोड़ा गया था। रेल के डिब्बे ,इंजनों एवं पर्वत मार्गों के मॉडल इतने आकर्षक है कि देखते ही बनता था। इन सब बातों से हमारा मन अधिक प्रसन्न हुआ। हमें यह बात स्मरण हो गई कि प्रदर्शनी देखने से ज्ञान की वृद्धि बढ़ती है।